नई दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) से गांधीजी का नाम हटाए जाने को लेकर सियासी बहस तेज हो गई है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि किसी भी चीज़ को “पत्थर की लकीर” नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र में समय और जनता की भावनाओं के अनुसार परिवर्तन होना स्वाभाविक है।

जयंत चौधरी ने कहा, “कोई भी चीज पत्थर की लकीर नहीं होती। लोकतंत्र के मायने होते हैं। जनता की भावनाओं के अनुरूप कार्यक्रमों में बदलाव होता है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा किए जा रहे बदलाव को केवल नाम बदलने तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके पीछे व्यावहारिक कारण भी हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कृषि क्षेत्र से जुड़ी दिक्कतों का हवाला देते हुए कहा कि कृषि सीजन के दौरान मनरेगा योजना कई बार समस्याएं खड़ी करती थी। किसानों की लगातार शिकायतें आ रही थीं कि खेतों में काम के समय उन्हें मजदूर नहीं मिल पाते थे, क्योंकि बड़ी संख्या में मजदूर मनरेगा के तहत काम करने चले जाते थे। इससे खेती प्रभावित होती थी और फसल की समय पर बुवाई व कटाई में परेशानी होती थी।जयंत चौधरी के अनुसार, “अब कृषि सीजन योजना से बाहर है। किसानों की शिकायत रहती थी कि मजदूर नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में सरकार को संतुलन बनाना जरूरी था, ताकि ग्रामीण रोजगार भी मिले और खेती भी प्रभावित न हो।” उन्होंने इशारों में कहा कि नया ढांचा ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि, दोनों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है।
गौरतलब है कि मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने को लेकर विपक्षी दल सरकार पर लगातार हमला बोल रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि यह राष्ट्रपिता का अपमान है और गरीबों की सबसे बड़ी रोजगार योजना की मूल भावना से छेड़छाड़ की जा रही है। वहीं सरकार और उसके सहयोगी दल इसे प्रशासनिक सुधार और व्यावहारिक जरूरत बता रहे हैं।
जयंत चौधरी के बयान को सरकार के पक्ष में एक संतुलित तर्क के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने भावनाओं के साथ-साथ जमीनी हकीकत का भी जिक्र किया। आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद से लेकर सियासी गलियारों तक और ज्यादा गरमाने की संभावना है।
