केदारनाथ | उत्तराखंड की पवित्र केदारनाथ घाटी से सामने आए ताजा वीडियो ने पर्यावरण और मौसम को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। दिसंबर का महीना खत्म होने को है, लेकिन अब तक केदारनाथ घाटी में सीजन की पहली बर्फबारी नहीं हुई है। आमतौर पर हर साल दिसंबर के पहले सप्ताह में यहां बर्फ गिरना शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार पूरा महीना लगभग सूखा बीत गया है।

हर साल की परंपरा इस बार टूटी
स्थानीय लोगों, तीर्थ पुरोहितों और होटल व्यवसायियों के अनुसार,
हर साल दिसंबर के शुरुआती दिनों में केदारनाथ मंदिर और आसपास के पहाड़ बर्फ से ढक जाते थे। जनवरी–फरवरी में यहां कई फीट तक बर्फ जमना सामान्य बात थी। लेकिन इस साल मौसम अपेक्षाकृत गर्म बना हुआ है और तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया जा रहा है।
क्या यह ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर है?
मौसम विशेषज्ञ और पर्यावरण वैज्ञानिक मानते हैं कि यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से जुड़ी हो सकती है।पिछले कुछ वर्षों में हिमालयी क्षेत्रों में औसत तापमान बढ़ा है बर्फबारी की अवधि घट रही है मौसम के पैटर्न में अस्थिरता बढ़ी हैविशेषज्ञों का कहना है कि वेस्टर्न डिस्टर्बेंस (पश्चिमी विक्षोभ), जो उत्तर भारत में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी के लिए जिम्मेदार होते हैं, इस बार कमजोर रहे हैं।
सिर्फ केदारनाथ ही नहीं, पूरा हिमालय प्रभावित
केदारनाथ घाटी के साथ-साथ बद्रीनाथ, गंगोत्री,यमुनोत्री,हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के कई ऊंचाई वाले इलाके भी दिसंबर के अंत तक सामान्य से कम बर्फबारी का सामना कर रहे हैं। यह संकेत देता है कि समस्या स्थानीय नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र से जुड़ी हुई है।पर्यावरणविदों के अनुसार, बर्फबारी कम होने के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं:ग्लेशियर तेजी से पिघल सकते हैंनदियों के जलस्तर पर असर पड़ेगा गर्मियों में जल संकट गहराएगा भूस्खलन और ग्लेशियर झील फटने (GLOF) का खतरा बढ़ेगा तीर्थाटन और पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा
क्या बदल रहा है हिमालय का भविष्य?
केदारनाथ घाटी का सूखा दिसंबर यह सवाल खड़ा करता है कि क्या हिमालय अब पहले जैसा नहीं रहा। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच यह जरूरी हो गया है कि पर्यावरण संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन में कटौती और सतत विकास पर गंभीरता से काम किया जाए।फिलहाल मौसम विज्ञान विभाग आने वाले हफ्तों में बदलाव की संभावना जता रहा है, लेकिन दिसंबर में बर्फबारी न होना निश्चित रूप से खतरे की घंटी है। केदारनाथ घाटी का यह सूखा दिसंबर आने वाले समय में बड़े पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा कर सकता है।
