Aniruddhacharya Controversy-करौली सरकार का अनिरुद्धाचार्य पर प्रहार: “ये संत स्वभाव नहीं, अहंकार है”

करौली सरकार का अनिरुद्धाचार्य पर प्रहार: “ये संत स्वभाव नहीं, अहंकार है”

धर्मगुरु करौली सरकार ने कथावाचक अनिरुद्धाचार्य की युवतियों पर टिप्पणी को लेकर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि ऐसे शब्द संत स्वभाव नहीं बल्कि अहंकार है। पढ़ें पूरी खबर विस्तार से।

धार्मिक प्रवचन और संत समाज का उद्देश्य हमेशा से समाज को नैतिकता, सदाचार और भक्ति की ओर प्रेरित करना रहा है। लेकिन हाल ही में चर्चित कथावाचक अनिरुद्धाचार्य की एक टिप्पणी ने देशभर में विवाद खड़ा कर दिया है। युवतियों को लेकर उनकी टिप्पणी के बाद न केवल सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई, बल्कि अब कई धर्मगुरुओं ने भी इस पर प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है। इन्हीं में से एक हैं करौली सरकार (धर्मगुरु), जिन्होंने अनिरुद्धाचार्य के बयान को लेकर सीधा हमला बोला है।

करौली सरकार ने अनिरुद्धाचार्य के विवादित बयान पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा:

करौली सरकार ने अनिरुद्धाचार्य के विवादित बयान पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा:”उन्होंने बच्चियों को लेकर जिस तरीके से गंद मचाया है और बार-बार बयान को पुष्टि करने की कोशिश की है, ये संत स्वभाव नहीं, अहंकार है।””जो अपशब्द बोले जा रहे हैं, मेरा प्रश्न है कि उन्हें अनुभव हुआ कैसे?””इस तरह के शब्दों का उच्चारण उस व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं, जिसे लोग सुनते हों और आदर्श मानते हों।”स्पष्ट है कि करौली सरकार ने इस बयान को न केवल आपत्तिजनक बताया, बल्कि संत समाज के लिए कलंक जैसा करार दिया।

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

अनिरुद्धाचार्य, जो कि अपने प्रवचनों और धार्मिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध हैं, ने हाल ही में एक कथा के दौरान युवतियों पर ऐसी टिप्पणी कर दी, जिसने सबको चौंका दिया।उनके बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।कई लोग इस टिप्पणी को अमर्यादित और महिलाओं के प्रति अपमानजनक मान रहे हैं।वहीं, कुछ समर्थक इसे अलग तरह से पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अब संत समाज के ही लोग उनके खिलाफ बोल रहे हैं।

भारत में संतों और कथावाचकों की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। करोड़ों लोग उनके प्रवचनों को सुनकर जीवन में प्रेरणा लेते हैं। ऐसे में जब कोई कथावाचक या संत अनुचित टिप्पणी करता है, तो यह समाज में गलत संदेश पहुंचाता है।करौली सरकार ने इसीलिए चेताया कि जो लोग धर्म और अध्यात्म के मार्गदर्शक हैं, उन्हें अपने शब्दों का खास ध्यान रखना चाहिए।लोगों की भावनाओं और समाज की संवेदनशीलता को ठेस पहुंचाना धर्म की मूल भावना के विपरीत है।

सोशल मीडिया पर बवाल

अनिरुद्धाचार्य के बयान के बाद सोशल मीडिया पर जमकर प्रतिक्रियाएं सामने आईं। ट्विटर (X) पर लोग #अनिरुद्धाचार्य और #करौलीसरकार ट्रेंड कराने लगे।फेसबुक और यूट्यूब पर लाखों लोगों ने वीडियो देखकर नाराजगी जताई।कई लोगों ने इसे महिला असम्मान करार दिया और कार्रवाई की मांग की।संत समाज में दरार या चेतावनी?करौली सरकार के बयान को कई लोग संत समाज के भीतर की असहमति के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, जानकारों का कहना है कि यह दरार नहीं बल्कि चेतावनी है। यह संदेश है कि कोई भी संत, चाहे वह कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो, अगर धर्म और मर्यादा से बाहर जाकर कुछ बोलेगा तो समाज और संत दोनों उसकी आलोचना करेंगे।ऐसी घटनाएं युवाओं और भक्तों की आस्था को झटका देती हैं।लोगों के मन में संत समाज को लेकर संदेह पैदा होता है।महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचती है।करौली सरकार का बयान इसीलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि यह संदेश देता है कि संत समाज भी गलत को गलत कहने से पीछे नहीं हटेगा।अनिरुद्धाचार्य के विवादित बयान पर करौली सरकार की प्रतिक्रिया ने एक नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि धर्मगुरुओं और कथावाचकों की जिम्मेदारी कितनी बड़ी है और क्या वे अपनी वाणी से समाज को सही राह दिखा रहे हैं?
यह घटना इस बात का सबक है कि संतों और

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