कानपुर। जलकल विभाग में ट्रांसफर तो हो चुका है, लेकिन रवानगी (Relieving) का आदेश मानो किसी वीआईपी काउंटर पर अटक गया हो। दो अफसरों का तबादला जारी होने के बावजूद वे अब तक अपनी कुर्सी पर डटे हैं। विभागीय गलियारों में चर्चा है कि इनके “ऊँचे संपर्क” और “सिफारिश” ने रवानगी को रोक रखा है।विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि अफसरों की कुर्सी से ऐसी मोहब्बत है कि फाइलें जाम पड़ी हैं, काम रुका है, ठेकेदार परेशान हैं—पर साहब अभी भी उसी रौब में बैठते हैं, जैसे विभाग उनकी निजी जागीर हो।

ठेकेदारों की चुभती शिकायतें
विभाग के ठेकेदार बताते हैं कि एक अधिकारी से काम की बात करने जाइए तो वे योग्यता नहीं, पहले जाति पूछते हैं। आरोप यह भी है कि उनका एक “मौन-सहयोगी” हर गड़बड़ी में शामिल रहता हैकाम सब देखता है, लेकिन दिखाई कहीं नहीं देता।
सवालों के घेरे में सिस्टम
अब बड़ा सवाल यह है कि जब ट्रांसफर आदेश जारी है, तो रवानगी रोकी क्यों गई?क्या विभाग में नियम नहीं, “पहुँच” चलती है?क्या शहर की जलापूर्ति व्यवस्था ऐसे अफसरों के भरोसे है, जिनकी रवानगी सिफारिश पर निर्भर है?
जलकल विभाग पर उठ रहे सवाल
कानपुर की जनता पूछ रही है“ट्रांसफर हो गया, अब तबादला अमल में कौन करवाएगा?”विभागीय सूत्रों का कहना है कि फाइलें चल रही हैं, लेकिन वहां अटकी हैं जहां “सिस्टम और सिफारिश” की दोस्ती सबसे मजबूत होती है। आने वाले दिनों में साफ होगा कि जलकल विभाग के ये अफसर कुर्सी छोड़ेंगे या सिस्टम का मज़ाक बनाते रहेंगे।
