यूपी अफसरशाही पर फूटा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का गुस्सा,”राम मंदिर जाना आसान, फाइल पास कराना मुश्किल”

यूपी अफसरशाही पर फूटा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का गुस्सा

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित एक आधिकारिक कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का एक बयान तेजी से सुर्खियों में आ गया है। उन्होंने यूपी की अफसरशाही पर निशाना साधते हुए कहा—“राम मंदिर के दर्शन अब आसान हो गए हैं, लेकिन सरकार में एक फाइल पास कराना आज भी बेहद मुश्किल है।”राज्यपाल का यह बयान प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र की कार्यशैली पर एक बड़ा कटाक्ष माना जा रहा है। उन्होंने यह टिप्पणी तब की जब वे विकास योजनाओं की धीमी प्रगति और अधिकारियों की लापरवाही पर बोल रही थीं।

कहां और किस संदर्भ में दिया गया यह बयान? यूपी अफसरशाही पर फूटा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का गुस्सा

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल एक शासकीय कार्यक्रम में बोल रही थीं, जहाँ उन्होंने कई योजनाओं की समीक्षा करते हुए अधिकारियों की निष्क्रियता और विलंब की आदत पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि राम मंदिर जैसी ऐतिहासिक संरचना का निर्माण संभव हो गया, लेकिन एक सरकारी फाइल पर समय पर हस्ताक्षर नहीं हो पाते।

प्रशासनिक व्यवस्था पर उठे सवाल यूपी अफसरशाही पर फूटा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का गुस्सा

राज्यपाल का बयान कहीं ना कहीं इस ओर इशारा करता है कि प्रदेश में अफसरशाही आज भी ‘फाइलों की राजनीति’ और ‘विलंब संस्कृति’ से जकड़ी हुई है। इससे न केवल जनहित की योजनाओं में बाधा आती है, बल्कि लोगों का सरकार से विश्वास भी डगमगाने लगता है।

बयान के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल यूपी अफसरशाही पर फूटा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का गुस्सा

गवर्नर के इस तीखे बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। कुछ लोगों ने इसे अफसरशाही को चेतावनी माना, तो कुछ ने इसे प्रशासनिक तंत्र को सुधारने की आवश्यकता से जोड़ा।


क्या कहती है जनता? यूपी अफसरशाही पर फूटा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का गुस्सा

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह बयान बिल्कुल सही समय पर आया है। “हमने कई बार देखा है कि सामान्य कामों के लिए भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, फाइलें महीनों तक दबा दी जाती हैं,” एक निवासी ने बताया।


राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के इस बयान ने एक बार फिर से सरकारी सिस्टम के ढीलेपन को उजागर किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और प्रशासन इस आलोचना को आत्मचिंतन मानते हैं या फिर इसे नजरअंदाज करते हैं।

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