औरैया: उत्तर प्रदेश के औरैया जिले की ग्राम पंचायत अयाना में बसा भूरेपुर खुर्द गांव यमुना नदी के किनारे अपनी (KALPVRIKSHA TREE IN INDIA) ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियों के लिए जाना जाता है. इस छोटे से गांव में प्रकृति का एक अनमोल रत्न छिपा है—कल्पवृक्ष, जो न केवल स्थानीय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अद्वितीय है. गांव के निवासियों का कहना है कि औरैया में शायद ही कहीं और ऐसा वृक्ष देखने को मिले. उत्तर प्रदेश में यह पेड़ कुछ ही स्थानों जैसे प्रयागराज, हमीरपुर, और बाराबंकी में पाया जाता है, जबकि राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी इसकी मौजूदगी दर्ज की गई है. आइए, इस लेख में हम इस रहस्यमयी वृक्ष की कहानी, इसके पौराणिक महत्व, वैज्ञानिक पहलुओं, और औषधीय गुणों को विस्तार से जानते हैं. KALPVRIKSHA TREE IN INDIA

कल्पवृक्ष का पौराणिक महत्व- KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
हिंदू धर्म में कल्पवृक्ष को स्वर्ग का विशेष वृक्ष माना जाता है. पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से एक के रूप में कल्पवृक्ष की उत्पत्ति हुई थी. इसे देवराज इंद्र को भेंट किया गया था, जिन्होंने इसे हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में ‘सुरकानन वन’ में स्थापित किया. पद्मपुराण में इसे परिजात वृक्ष के रूप में भी पहचाना गया है. मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है, क्योंकि यह अपार सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है. KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
स्थानीय लोग बताते हैं कि भूरेपुर खुर्द का यह कल्पवृक्ष न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह गांव की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का भी हिस्सा है. श्रद्धालु इसकी छाया में बैठकर प्रार्थना करते हैं और अपनी इच्छाओं को पूर्ण होने की उम्मीद रखते हैं. इसकी शाखाएं और पत्तियां भी लोगों के लिए पवित्र मानी जाती हैं.
वैज्ञानिक पहलू: ओलिया कस्पिडाटा और बंबोकेसी- KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
कल्पवृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पिडाटा (Adansonia digitata) है, और यह ओलिएसी कुल का हिस्सा है. भारत में इसे वानस्पतिक रूप से बंबोकेसी के नाम से जाना जाता है. इस वृक्ष को पहली बार 1775 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने अफ्रीका के सेनेगल में खोजा था, जिसके बाद इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया. इसे बाओबाब वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है. यह पेड़ यूरोप के फ्रांस और इटली, दक्षिण अफ्रीका, और ऑस्ट्रेलिया में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. KALPVRIKSHA TREE IN INDIA

भारत में यह वृक्ष दुर्लभ है और केवल कुछ चुनिंदा स्थानों जैसे रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा नदी के किनारे, कर्नाटक, और उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, हमीरपुर और अब औरैया में देखने को मिलता है. भूरेपुर खुर्द का यह वृक्ष अपनी विशालता और लंबी आयु के लिए प्रसिद्ध है. कार्बन डेटिंग के अनुसार, इस तरह के वृक्षों की आयु 2,000 से 6,000 वर्ष तक हो सकती है. KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
कल्पवृक्ष की अनोखी विशेषताएं- KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
कल्पवृक्ष की संरचना इसे अन्य वृक्षों से अलग बनाती है. इसकी लकड़ी में पानी की मात्रा लगभग 79% होती है, जिसके कारण यह सीधा और मजबूत रहता है. इसका तना मोटा और खोखला होता है, जो इसे 1 लाख लीटर से अधिक पानी संग्रह करने की क्षमता देता है. यही कारण है कि इसे ‘जीवन का वृक्ष’ भी कहा जाता है. इसकी छाल से रंगरेज रंजक (डाई) बनाते हैं, और इसका उपयोग चीजों को सघन करने में भी किया जाता है.
इसके अलावा, यह वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है. इसकी पत्तियों को धोकर या उबालकर खाया जा सकता है, जबकि छाल, फल, और फूलों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में होता है. इसमें संतरे से छह गुना अधिक विटामिन सी और गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम पाया जाता है, जो इसे एक औषधीय खजाना बनाता है.
भूरेपुर खुर्द में कल्पवृक्ष का महत्व- KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
भूरेपुर खुर्द के निवासियों के लिए यह वृक्ष केवल एक पेड़ नहीं बल्कि उनकी आस्था और गर्व का प्रतीक है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इस वृक्ष की मौजूदगी ने गांव को एक विशेष पहचान दी है. यमुना नदी के किनारे बसे इस गांव में आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु इस वृक्ष को देखने और इसके नीचे ध्यान लगाने के लिए आते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि इसकी सकारात्मक ऊर्जा न केवल मन को शांति देती है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है.
संरक्षण की जरूरत- KALPVRIKSHA TREE IN INDIA
कल्पवृक्ष जैसी दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण आज के समय में अत्यंत आवश्यक है. भूरेपुर खुर्द का यह वृक्ष न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि पर्यावरण और जैव-विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण है. वन विभाग और स्थानीय प्रशासन को इसके संरक्षण के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए. अनुसंधान केंद्रों के माध्यम से इस प्रजाति को अन्य क्षेत्रों में भी रोपित करने की पहल होनी चाहिए, ताकि यह विलुप्त होने से बचे.
अन्य क्षेत्रों में कल्पवृक्ष
उत्तर प्रदेश के अलावा, भारत में यह वृक्ष रांची के दोरांडा क्षेत्र, ग्वालियर के कोलारस, और राजस्थान के मांगलियावास जैसे स्थानों पर पाया जाता है। बाराबंकी के बोरोलिया में मौजूद परिजात वृक्ष को भी कल्पवृक्ष माना जाता है, जिसकी आयु 5,000 वर्ष से अधिक बताई गई है। इन सभी स्थानों पर यह वृक्ष श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
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सोर्स- कल्पवृक्ष का पौराणिक महत्व