Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi: करवा चौथ व्रत भारतीय संस्कृति में विवाहिता महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला प्रमुख व्रत है। इसकी उत्पत्ति और महात्म्य का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। सबसे पहले भगवान शिव ने माता पार्वती को इसकी कथा सुनाई थी, जबकि द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को यह व्रत और उसकी कथा बताई।

महाभारत के युद्ध आरंभ होने से पहले, जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे और लंबे समय तक लौटे नहीं, तो द्रौपदी चिंतित हुई। तब भगवान कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ का व्रत रखने और इसके महात्म्य को जानने की सलाह दी। कृष्ण ने द्रौपदी को बताया कि यह व्रत पति की लंबी उम्र और सुख-शांति के लिए अत्यंत फलदायी है।
करवा चौथ कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी, भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय का पूजन किया जाता है। विशेष रूप से गेहूं का करवा भरकर पूजा जाता है और विवाहित महिलाओं के घरों में पीहर से चीनी के करवे भेजे जाते हैं। व्रत की प्रक्रिया में महिलाएं कथा सुनकर और चाँद को अर्घ्य देकर उपवास खोलती हैं।
करवा चौथ व्रत कथा
एक नगर में एक साहूकार के सात बेटे और एक लड़की थी। साहूकार की बहुएँ और बेटी करवा चौथ का व्रत रखती थीं। रात्रि को जब बेटे भोजन करने लगे, तो उन्होंने अपनी बहन से कहा कि भोजन कर लो। बहन ने उत्तर दिया कि “भाई! अभी चाँद नहीं निकला है, निकलते ही अर्घ्य देकर भोजन करूंगी।”

भाइयों ने उसे धोखा देने का विचार किया। उन्होंने नगर से बाहर जाकर अग्नि जलाई और छलनी से प्रकाश दिखाकर बहन से कहा, “भाई! चाँद निकल आया, अब भोजन करो।” बहन ने अपनी भाभियों से भी कहा कि आओ, चाँद को अर्घ्य दो। लेकिन भाभियों ने उत्तर दिया कि अभी चाँद नहीं निकला, तुम्हारे भाई छलनी से प्रकाश दिखा रहे हैं।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि करवा चौथ का व्रत भक्ति, समर्पण और पति के प्रति विश्वास का प्रतीक है। आज भी महिलाएँ इस व्रत को बड़ी श्रद्धा और भक्ति से निभाती हैं।