lekhkon kaa virodh: जम्मू-कश्मीर में 25 किताबों पर बैन, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल

lekhkon kaa virodh

कश्मीर में शब्दों से डरने लगी है सत्ता?

lekhkon kaa virodh: जम्मू-कश्मीर सरकार ने हाल ही में 25 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया, इनमें बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते सुमंत्र बोस की किताबें शामिल हैं। सरकार का तर्क है कि ये किताबें आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देती हैं, जबकि लेखक और पब्लिशर्स इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मान रहे हैं। इस फैसले से सिर्फ कश्मीर नहीं, बल्कि पूरे देश में बौद्धिक स्वतंत्रता को लेकर बहस छिड़ गई है।


सरकार का आदेश और उसका असर

किन किताबों पर लगा प्रतिबंध?

  • 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 किताबों पर बैन लगाने का आदेश जारी किया।
  • अरुंधति रॉय की ‘आजादी’, सुमंत्र बोस की किताबें, अथर ज़िया की ‘Resisting Disappearance’ और अनुराधा भसीन की ‘A Dismantled State’ प्रमुख रूप से शामिल हैं।
  • कुछ किताबें 18 साल पहले पब्लिश हुई थीं।

सरकार का पक्ष

सरकार का कहना है कि इन किताबों में ऐसा कंटेंट है जो:

  • आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है।
  • अलगाववाद की मानसिकता को उकसाता है।
  • जम्मू-कश्मीर की कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है।

पुलिस की कार्रवाई

  • सरकार के आदेश के तुरंत बाद पुलिस ने श्रीनगर समेत कई इलाकों में बुक स्टोर्स पर छापेमारी की।
  • जिन किताबों पर प्रतिबंध है, उनका स्टॉक जब्त किया गया।
  • दुकानदारों ने डर के कारण किताबें हटा दी हैं और कैमरे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।

lekhkon kaa virodh: “ये सिर्फ बैन नहीं, दहशत फैलाने की साजिश है”

Copy of YT THUMBNAIL1 8 1
lekhkon kaa virodh जम्मू-कश्मीर सरकार ने हाल ही में 25 किताबों पर प्रतिबंध

सुमंत्र बोस बोले: “ब्रिटिशों जैसा कर रही है सरकार”

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते सुमंत्र बोस ने तीखी प्रतिक्रिया दी:”90 साल पहले अंग्रेजों ने नेताजी की किताब बैन की थी। अब मेरी किताब पर बैन लगाया गया है। क्या हम लोकतंत्र में सरकार की आलोचना भी नहीं कर सकते?”उनकी किताबों को लेकर सरकार की कार्रवाई उन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी का दमन बताया।


अथर ज़िया: “कश्मीर की हकीकत से डर रही सरकार”

अथर ज़िया की किताब ‘Resisting Disappearance’ भी प्रतिबंधित पुस्तकों में है। ये किताब कश्मीर में गायब हुए लोगों की कहानियों और महिलाओं के संघर्ष पर आधारित है।”ये कोई पहली बार नहीं है। कश्मीर में पहले भी किताबों, लिटरेचर और यहां तक कि सिलेबस से किताबें हटाई गई हैं।”उनका मानना है कि ये बैन सिर्फ कंटेंट पर नहीं, बल्कि कश्मीर की सच्चाई को छिपाने की कोशिश है।

जो अथर ज़िया ने उठाए lekhkon kaa virodh पर:

  • किताब में जिन महिलाओं की कहानियां हैं, वो सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं।
  • 2014 के बाद से कश्मीर में दबाव और सेंसरशिप बढ़ी है।
  • किताबों के बहाने लोगों में डर फैलाया जा रहा है कि अगर आपके पास कोई बैन की गई किताब मिले, तो पुलिस रेड कर सकती है।

अनुराधा भसीन: “सरकार हर आलोचना का सबूत मिटाना चाहती है”

अनुराधा भसीन की किताब ‘A Dismantled State’ आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में बदलावों पर आधारित है।”2019 से 2021 तक मैं कश्मीर में रही। मेरी किताब पूरी तरह तथ्यों और फील्ड रिसर्च पर आधारित है। इसमें कोई आतंकवाद को समर्थन नहीं है।”उनका कहना है कि सरकार को बताना चाहिए कि उनकी किताब आतंकवाद से कैसे जुड़ी है।

  • पब्लिशर्स किताब छापने से पहले कंटेंट की कई स्तरों पर जांच करते हैं।
  • अगर आतंकवाद खत्म हो गया है, तो किताबों से खतरा कैसे?
  • सरकार ने पहले मीडिया की आज़ादी खत्म की, अब किताबों की बारी है।
  • कश्मीर में लंबे समय से सेंसरशिप है, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ गया है।

क्या बैन का उल्टा असर होगा?

लेखकों का मानना है कि इस तरह के बैन किताबों को और लोकप्रिय बना सकते हैं। क्योंकि अब अधिकतर कंटेंट डिजिटल माध्यम से भी उपलब्ध है।”लोग अब इन किताबों को ऑनलाइन खोजेंगे और पढ़ेंगे। बैन लगाकर आप विचारों को नहीं रोक सकते।”


निष्कर्ष: सवाल सिर्फ किताबों का नहीं, आज़ादी का है

जम्मू-कश्मीर में किताबों पर लगा बैन केवल साहित्य का मुद्दा नहीं है, ये एक बड़े लोकतांत्रिक सवाल की ओर इशारा करता है—क्या सरकार आलोचना सहने को तैयार नहीं? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब सिर्फ एक सैद्धांतिक अधिकार बनकर रह गई है? आपकी राय क्या है? क्या सरकार का फैसला सही है या ये अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है? अपनी राय नीचे कमेंट करें या इसे शेयर करें।

SOURCES : List of books banned in India

READ THIS ALSO: अखिलेश दुबे की धमकी-एक झटका लगेगा…खेल खत्म:BJP नेता से कहा- लड़की का कानपुर कोर्ट में बयान हो चुका है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *