50 years of Emergency: 1975 की इमरजेंसी; पांच बदलाव जो बन गए भारतीय राजनीति के टर्निंग पॉइंट

50 years of Emergency
लेखक- संदीप कुमार (मैनेजिंग एडिटर)

50 years of Emergency: 25 जून 1975 की वह रात भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय की शुरुआत थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश में आपातकाल (इमरजेंसी) लागू करने का ऐलान किया। यह निर्णय न केवल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा झटका था, बल्कि इसने देश की सियासत को भी नए रंगों में रंग दिया। इमरजेंसी के दौरान लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हुआ, हजारों लोग जेलों में बंद किए गए, और प्रेस की आजादी पर ताला लग गया। लेकिन इसके बावजूद, इस दौर ने भारतीय राजनीति में कई ऐतिहासिक बदलावों को जन्म दिया। आइए, इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर इसके पांच बड़े सियासी प्रभावों पर नजर डालें। 50 years of Emergency

1. जयप्रकाश नारायण: एक नए नेतृत्व का उदय- 50 years of Emergency

आजादी के बाद से भारतीय राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व निर्विवाद था। पंडित जवाहरलाल नेहरू और फिर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने केंद्र और राज्यों में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी। लेकिन इमरजेंसी ने इस एकछत्र राज को चुनौती दी। इस दौर में जयप्रकाश नारायण, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से जाना जाता है, एक नए नेतृत्व के रूप में उभरे। 50 years of Emergency

जेपी, जैसा कि उन्हें प्यार से बुलाया जाता था, ने इमरजेंसी के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू किया। उनका ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा युवाओं और आम जनता के बीच गूंजने लगा। इस आंदोलन ने न केवल इंदिरा गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी, बल्कि भारतीय सियासत को नए चेहरों और विचारों से परिचित कराया। जेपी ने साबित किया कि नेतृत्व केवल सत्ता में बैठकर नहीं, बल्कि जनता के बीच रहकर भी किया जा सकता है। 50 years of Emergency

2. किंगमेकर की परंपरा की शुरुआत- 50 years of Emergency

इमरजेंसी विरोधी आंदोलन ने भारतीय राजनीति में एक नई परंपरा को जन्म दिया—‘किंगमेकर’ की। जयप्रकाश नारायण उस समय गैर-कांग्रेसी दलों के सबसे बड़े प्रतीक थे। 1977 के आम चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई, जो विभिन्न विचारधाराओं के दलों का गठजोड़ थी। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि जेपी ने न तो खुद चुनाव लड़ा और न ही सरकार में कोई पद स्वीकार किया। 50 years of Emergency

https://twitter.com/myogiadityanath/status/1937672733074051288

जेपी ने किंग की जगह किंगमेकर बनने को प्राथमिकता दी। यह एक ऐसी परंपरा थी, जिसने गठबंधन की सियासत को जन्म दिया। इसके बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ, जो आज भी देश की सियासत का एक अहम हिस्सा है। 50 years of Emergency

3. कांग्रेस के एकछत्र राज का अंत- 50 years of Emergency

आजादी के बाद से 1975 तक, कांग्रेस का भारतीय सियासत पर एकछत्र राज था। केंद्र से लेकर राज्यों तक, कांग्रेस की सरकारें थीं, और इसे चुनौती देना किसी भी दल के लिए असंभव-सा लगता था। लेकिन इमरजेंसी और इसके खिलाफ हुए आंदोलन ने इस मिथक को तोड़ दिया।

1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। इंदिरा गांधी स्वयं अपनी रायबरेली सीट हार गईं। इस हार ने कांग्रेस की अजेय छवि को ध्वस्त कर दिया और यह साबित किया कि भारतीय मतदाता सत्ता को बदलने की ताकत रखता है। इसने लोकतंत्र में जनता की ताकत को और मजबूत किया।

4. जनता परिवार का जन्म और विस्तार- 50 years of Emergency

इमरजेंसी विरोधी आंदोलन ने विभिन्न विचारधाराओं को एक मंच पर लाने का काम किया। समाजवादी, गांधीवादी, और जनसंघ जैसे अलग-अलग विचारों वाले दल एकजुट हुए और जनता पार्टी का गठन हुआ। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने 542 में से 298 सीटें जीतकर सरकार बनाई।

हालांकि, जनता पार्टी की सरकार ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी और दो साल में ही आंतरिक मतभेदों के कारण यह बिखर गई। लेकिन इसने कई नए दलों को जन्म दिया। जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), बीजू जनता दल, और राष्ट्रीय लोक दल जैसे दल इसी जनता परिवार का हिस्सा हैं। यह दौर भारतीय सियासत में बहुदलीय व्यवस्था की नींव साबित हुआ।

5. बीजेपी का उदय और दिल्ली की सत्ता तक का सफर- 50 years of Emergency

इमरजेंसी विरोधी आंदोलन ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उदय की पृष्ठभूमि तैयार की। भारतीय जनसंघ, जो जनता पार्टी का हिस्सा था, ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन जनता पार्टी में आंतरिक मतभेदों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की।

बीजेपी ने अपनी शुरुआत दो सीटों के साथ की थी, लेकिन धीरे-धीरे यह पार्टी भारतीय सियासत की मुख्यधारा में शामिल हो गई। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने पहली बार केंद्र में सरकार बनाई, भले ही वह केवल 13 दिनों तक चली। इसके बाद 1998 और 1999 में बीजेपी ने पूर्णकालिक सरकारें बनाईं, और 2014 से यह पार्टी लगातार केंद्र की सत्ता पर काबिज है।

इमरजेंसी का दीर्घकालिक प्रभाव- 50 years of Emergency

इमरजेंसी का दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक कठिन परीक्षा थी, लेकिन इसने कई सबक भी सिखाए। इसने जनता में लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा की और सत्ता के विकेंद्रीकरण को बढ़ावा दिया। इमरजेंसी ने यह भी साबित किया कि भारतीय मतदाता अपनी ताकत को पहचानता है और वह सत्ता को बदलने की हिम्मत रखता है।\

ये भी पढ़ें- Agni-5 conventional missile: पलक झपकते ही होगा किराना हिल्स का खात्मा! ये मिसाइल तैयार कर रहा भारत, जानिए खासियत

आज जब हम इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने की बात करते हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि यह दौर न केवल एक संकट था, बल्कि भारतीय सियासत को नई दिशा देने वाला एक ऐतिहासिक मोड़ भी था। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व से लेकर बीजेपी के उभार तक, इमरजेंसी ने भारतीय राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।

इमरजेंसी का दौर भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसने न केवल सियासत को बदला, बल्कि लोकतंत्र को और मजबूत करने में भी योगदान दिया। इसने सत्ता के एकध्रुवीय स्वरूप को तोड़ा और बहुदलीय व्यवस्था को जन्म दिया। आज, जब हम इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर पीछे मुड़कर देखते हैं, तो यह स्पष्ट है कि यह दौर भारतीय सियासत के लिए एक टर्निंग पॉइंट था, जिसने देश को नए नेतृत्व, नई परंपराओं, और नए दलों से परिचित कराया।

सोर्स- AAJ TAK

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *