छठ महापर्व की पौराणिक कथाएं: आस्था, श्रद्धा और सूर्योपासना का महात्म्य

छठ महापर्व की पौराणिक कथाएं: आस्था, श्रद्धा और सूर्योपासना का महात्म्य

छठ महापर्व की पौराणिक कथाएं – सनातन परंपरा में भगवान सूर्य देव और षष्ठी देवी (छठी मैया) की उपासना के लिए समर्पित छठ महापर्व का अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल चतुर्थी (नहाय खाय) से आरंभ होकर चार दिनों तक चलता है। लोक आस्था से जुड़ा यह पर्व न केवल धार्मिक अनुशासन का प्रतीक है बल्कि यह 36 घंटे निर्जल व्रत के माध्यम से आत्मशक्ति, संकल्प और भक्ति का अद्भुत उदाहरण भी है।आइए जानते हैं छठ पर्व से जुड़ी प्रमुख पौराणिक कथाएं, जिनमें इसकी महिमा और उत्पत्ति का वर्णन मिलता है

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कथा 1: भगवान श्रीराम और माता सीता ने किया छठ व्रत

हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम सूर्यवंशी कुल में जन्मे थे। जब वे रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे, तब माता सीता ने भगवान सूर्य देव की उपासना करते हुए छठ व्रत किया था। इस व्रत के माध्यम से उन्होंने राज्य में सुख, समृद्धि और शांति की कामना की थी। इसी दिन से छठ पर्व की परंपरा शुरू हुई मानी जाती है।

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कथा 2: द्रौपदी और पांडवों ने किया छठ व्रत

महाभारत काल में जब पांडव जुएं में सबकुछ हार गए और वनवास भोगने लगे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को सलाह दी कि वे सूर्य साधना और छठ व्रत करें। मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने के बाद पांडवों को अपने कष्टों से मुक्ति मिली और उन्हें खोया वैभव पुनः प्राप्त हुआ।

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कथा 3: वैश्य को सूर्य देव ने लौटाई दृष्टि

एक बार बिन्दुसर तीर्थ पर एक वैश्य, जिसका नाम महीपाल था, धर्म और देवताओं का विरोधी था। उसने एक बार सूर्य देव की मूर्ति का अपमान किया, जिससे क्रोधित होकर सूर्य देव ने उसे अंधा होने का श्राप दिया।
कष्टों से व्याकुल होकर जब वह गंगा में डूबकर प्राण त्यागने जा रहा था, तभी नारद मुनि ने उसे रोका और सूर्य उपासना करने की सलाह दी। वैश्य ने पूरे विधि-विधान से छठ व्रत किया, जिसके बाद उसकी दृष्टि लौट आई और उसका जीवन सुखमय हो गया।

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कथा 4: राजा प्रियव्रत और षष्ठी देवी का वरदान

कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की सलाह पर पुत्रयेष्टि यज्ञ कराया, जिसके बाद रानी को गर्भ तो हुआ लेकिन मृत बच्चे का जन्म हुआ। राजा और प्रजा शोक में डूब गए।
तभी षष्ठी देवी (छठी मैया) प्रकट हुईं और उन्होंने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श करते ही जीवित कर दिया। इसके बाद राजा प्रियव्रत ने हर वर्ष इस व्रत को करने का संकल्प लिया। तभी से छठ पर्व लोक आस्था का महापर्व बन गया।


छठ महापर्व केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, तप, शुद्धता और कृतज्ञता का उत्सव है। सूर्य देव और षष्ठी मैया की उपासना से जीवन में प्रकाश, संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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