नई दिल्ली। भारत में हाथियों की संख्या पिछले आठ साल में 25 फीसदी घट गई है। 2017 में देश में कुल 29,964 हाथी थे, जो अब घटकर 22,446 रह गए हैं। यह जानकारी MoEFCC और भारतीय वन्यजीव संस्थान के हालिया अध्ययन में सामने आई है।

हाथियों की मौत के प्रमुख कारणों में बिजली का झटका, ट्रेन की टक्कर, अवैध शिकार और आवास का नुकसान शामिल हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक कमर कुरैशी ने बताया कि बिजली के खंभे, खेतों के चारों ओर लगाई गई बाड़, सड़कें और पटरियां हाथियों के आवास को काट रही हैं, जिससे उनका पारिस्थितिक जीवन प्रभावित हो रहा है।
कुरैशी ने कहा कि भारत में कोई व्यापक भूदृश्य योजना नहीं है जो जैव विविधता और विकासात्मक गतिविधियों को संतुलित रूप से एकीकृत करे। परियोजनाओं को जांच से बचाने के लिए छोटे घटकों में बांट दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप हाथी रेंज के 15 राज्यों में उनकी प्राकृतिक आवासीय गलियारों में विखंडन बढ़ा है।
विभिन्न क्षेत्रों में हालात
- पश्चिमी घाट: यहां सबसे अधिक 12,000 हाथी रहते हैं, लेकिन बढ़ते विखंडन के कारण झुंड अलग-थलग पड़ रहे हैं।
- मध्य भारत: खनन और बस्तियों के विस्तार ने वन क्षेत्रों को काट दिया है, जिससे हाथियों के पारिस्थितिक संतुलन पर खतरा है।
वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन खतरों को नियंत्रित नहीं किया गया, तो हाथियों की संख्या में गिरावट और पारिस्थितिक संकट और गहरा सकता है। विशेषज्ञों ने जंगली हाथियों के लिए सुरक्षित गलियारों और बिजली लाइनों का निर्माण करने की सलाह दी है।
यह अध्ययन भारत में डीएनए-आधारित हाथी जनसंख्या गणना का पहला परिणाम है, जिससे अब देशभर में हाथियों की वास्तविक संख्या और उनके जीवन पर पड़ रहे खतरे का सही आंकलन संभव हुआ है।