भगवान शिव और दक्ष प्रजापति की यह कथा हमें अहंकार और सम्मान की महत्वता समझाती है। एक दिन दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों और विद्वानों को बुलाया। यज्ञ स्थल पर सभी देवताओं ने उनके सम्मान में खड़े होकर आदर व्यक्त किया। लेकिन दक्ष के मन में अहंकार ने जन्म लिया। उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि कितने लोग उनके सम्मान में खड़े हैं, बल्कि यह देखने लगे कि कौन खड़ा नहीं हुआ।

भगवान शिव, जो दक्ष के दामाद थे, ध्यानमग्न बैठे रहे और किसी के आने-जाने पर ध्यान नहीं दिया। दक्ष को यह अपमानजनक लगा और उन्होंने कटु वचन कहे। उनके अहंकार ने यज्ञ स्थल की शांति को भंग कर दिया। शिव जी ने शांत रहकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनके वाहन नंदी ने क्रोध में दक्ष को शाप दिया। देखते ही देखते यज्ञ स्थल शापों का रणक्षेत्र बन गया और अंततः शिव जी अपने गणों के साथ यज्ञ स्थल से चले गए। आगे चलकर यही घटना सती के आत्मदाह और दक्ष यज्ञ के विनाश का कारण बनी।
कहानी से सीख
- अहंकार की पहचान करें: जब आप दूसरों के व्यवहार से अधिक अपने सम्मान की चिंता करने लगते हैं, तो समझें कि अहंकार ने प्रवेश कर लिया है।
- पद बड़ा नहीं, व्यवहार बड़ा होता है: सम्मान पद से नहीं, अच्छे व्यवहार और विनम्रता से मिलता है।
- मौन से टल सकता विवाद: मुश्किल स्थिति में शांत रहना और तुरंत प्रतिक्रिया न देना, विवाद टाल सकता है।
- क्रोध में शब्दों का चयन: क्रोध में बोले गए शब्द रिश्तों को तोड़ सकते हैं। सोच-विचार के बाद ही बोलें।
- शांति बनाए रखें: कठिन समय में शांत रहने वाला व्यक्ति समाधान खोज लेता है और सम्मान अर्जित करता है।
यह कथा हमें याद दिलाती है कि अहंकार अच्छे कामों को भी बर्बाद कर सकता है, इसलिए विनम्रता, शांति और सम्मान का मार्ग हमेशा अपनाना चाहिए।
