भारत में दिवाली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार घरों में दीपक जलाने, मिठाइयाँ बनाने और पटाखों की गूंज के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का सम्मू गांव इस दिन सन्नाटे में डूबा रहता है। यह गांव दशकों से दिवाली नहीं मनाता और इसे लोग आज भी शापित गांव के नाम से जानते हैं।

क्यों नहीं मनाते हैं दिवाली?
जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित सम्मू गांव में लोग न दीपावली पर पकवान बनाते हैं, न घर सजाते हैं और न ही उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि यदि कोई दिवाली मनाने की कोशिश करता है, तो गांव में आपदा या अकाल मृत्यु हो सकती है। इसी डर के कारण लोग दिवाली से दूर रहते हैं।

गांव के बुजुर्गों के अनुसार यह श्राप सैकड़ों साल पुराना है। कहा जाता है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दिवाली के दिन गांव की एक महिला अपने मायके गई थी। उसी समय उसके पति, जो सेना में थे, की मृत्यु हो गई। गर्भवती महिला यह दृश्य देख नहीं सकी और अपने पति के साथ सती हो गई। जाते-जाते उसने पूरे गांव को श्राप दिया कि यहाँ कभी दिवाली नहीं मनाई जाएगी। तब से इस परंपरा का पालन होता आ रहा है।
प्रथम विश्व युद्ध और श्राप की कहानी
सम्मू गांव के निवासी रघुवीर सिंह रंगड़ा बताते हैं कि अब तक कई बार लोग दिवाली मनाने की कोशिश कर चुके हैं। पूजा-पाठ और विभिन्न उपाय किए गए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। किसी ने भी त्योहार मनाने की हिम्मत नहीं जुटाई क्योंकि इसके बाद गांव में अनहोनी घटने का डर हमेशा बना रहता है।

यह कहानी सिर्फ सम्मू गांव दिवाली की अनूठी परंपरा नहीं है, बल्कि यह इतिहास और मान्यताओं के साथ जुड़े लोक जीवन का भी प्रतीक है। हिमाचल के इस गांव में दिवाली न मनाने की वजह से यह अन्य गांवों से पूरी तरह अलग और अद्वितीय बना हुआ है।