लखनऊ में विजयदशमी का पर्व उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। ऐशबाग रामलीला मैदान में आयोजित रामलीला में इस बार 65 फीट ऊंचे रावण के पुतले का भव्य दहन किया गया। जैसे ही प्रभु श्रीराम ने रावण पर बाण चलाया, पूरे मैदान में “जय श्रीराम” के उद्घोष गूंज उठे और आसमान रंग-बिरंगी आतिशबाजी से जगमगा उठा। इस बार रामलीला समिति ने पुतले को इस सोच के साथ जलाया कि विदेशी निर्भरता, नक्सलवाद और जातिवाद जैसी बुराइयों का नाश हो।

हर साल की तरह इस साल भी रामलीला में हजारों श्रद्धालु और दर्शक शामिल हुए। भीड़ नियंत्रण के लिए प्रशासन और पुलिस ने कड़े इंतज़ाम किए थे। मंच पर रामलीला के पात्रों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लीला का अद्भुत मंचन किया, जिसे देखकर दर्शक भावविभोर हो उठे।

रामलीला के अध्यक्ष हरीश चंद्र अग्रवाल के अनुसार, ऐशबाग की रामलीला सबसे बड़ी और प्रसिद्ध है और यह कई सौ सालों से आयोजित होती आ रही है। रामलीला में बंगाल और स्थानीय 250 से 300 कलाकार भाग लेते हैं। पिछले पांच सालों से समिति केवल रावण के पुतले का दहन करती है, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले नहीं जलाए जाते। ऐसा इसलिए क्योंकि मेघनाथ और कुंभकर्ण ने रावण के अहंकार में माता सीता और राम से माफी मांगने की कोशिश की थी, पर रावण वशीभूत और अहंकारी था। मेघनाथ और कुंभकर्ण ने अपने पिता और बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए बलिदान दिया। इसीलिए केवल अहंकारी रावण का वध किया जाता है।
इस भव्य आयोजन ने न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाया बल्कि आधुनिक समाज में बुराइयों के खिलाफ संदेश भी दिया। ऐशबाग रामलीला मैदान की यह परंपरा हजारों श्रद्धालुओं के लिए हर साल आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।