आज भारत के वीर योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की जयंती है। सिर्फ 24 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर इतिहास रच दिया। कारगिल युद्ध (1999) के दौरान उनके साहस और अदम्य वीरता ने उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से अमर कर दिया।
कैप्टन विक्रम बत्रा कौन थे?
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ। उनकी शुरुआती पढ़ाई पालमपुर में हुई और इसके बाद उन्होंने आर्मी में शामिल होने का सपना देखा। विक्रम बत्रा बचपन से ही देशभक्ति और साहस के लिए पहचाने जाते थे।
कारगिल युद्ध में शेरशाह का शौर्य
- कैप्टन विक्रम बत्रा जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के साथ तैनात थे।
- उन्होंने दुश्मन के कब्जे से प्वाइंट 5140 और बाद में प्वाइंट 4875 पर कब्जा कर भारतीय झंडा लहराया।
- इस दौरान उन्होंने अपने साथियों का हौसला बढ़ाया और खुद सबसे आगे रहकर लड़ाई लड़ी।
- उनका मशहूर डायलॉग था – “यह दिल मांगे मोर” – जो आज भी भारतीय सेना के जज्बे का प्रतीक है।
- 7 जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 पर लड़ाई के दौरान वे वीरगति को प्राप्त हुए।
कैप्टन विक्रम बत्रा को उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। उनकी शहादत ने पूरे देश को गर्व और आंसुओं से भर दिया।युवाओं के लिए प्रेरणा कैप्टन बत्रा की कहानी सिर्फ एक सैनिक की गाथा नहीं, बल्कि साहस, देशप्रेम और त्याग का प्रतीक है।उनकी जयंती पर आज देश उन्हें नमन कर रहा है और युवा पीढ़ी उनके जीवन से प्रेरणा ले रही है।कारगिल युद्ध के नायक की स्मृति में बनी फिल्म शेरशाह ने भी उनकी वीरता को दुनिया तक पहुंचाया।कैप्टन विक्रम बत्रा का जीवन संदेश देता है कि सच्चा देशभक्त वही है जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानता है। 24 साल की उम्र में दिया उनका बलिदान हमेशा भारतीयों की स्मृतियों में अमर रहेगा।